जिंदगी प्यार का गीत
जिंदगी प्यार का गीत – २
सारा दिन रोहन उस लड़की के बारे में ही सोचता रहा।
कुछ अजीब सी कशिश थी उसमें, सुंदर गोल चेहरा, बड़ी बड़ी आंखें, कंधे से नीचे तक लहराते काले घने बाल, संगमरमर सा साफ शीतल रंग और चेहरे की वो मासूमियत रह रह कर उसका ध्यान भटका रही थी। उसे बार बार उसका वो उलझा सा मासूम चेहरा याद आ जाता। उसकी हिरनी सी डरी डरी सी आंखें दिखाई देती। बारिश में खुद को संभाले समेटे हुए उसकी वो शख्सियत कहीं गहरे तक उस पर अपना असर छोड़ गई थी।
ऐसा नही की सोलन में खूबसूरत लड़कियों की कोई कमी थी, ईश्वर ने जहां पहाड़ों को अपने नैसर्गिक सौंदर्य से सजाया है वहीं इंसानों में भी भोलापन और खूबसूरती देने में कोई कोताही नहीं बरती।
हर रोज झुंड के झुंड बला की खूबसूरत बालाएं नजर आती पर रोहन ने कभी किसी को नजर भर कर नही देखा।
कॉलेज के दिनों में भी उसका ध्यान अपनी पढ़ाई पर ही केंद्रित रहा। पढ़ने लिखने में अव्वल तो खेल कूद में भी आगे, बहुत सारी लड़कियां थी जो उसके नाम की माला जपती रहती थी।
पर उसने कभी किसी में अपनी रुचि नहीं दिखाई, इसलिए लड़कियां उसको घमंडी, अकडू जाने क्या क्या नाम देती पर मन ही मन हर कोई उसे अपनी ओर आकर्षित भी करना चाहता।
बारिश सारा दिन लगातार चलती ही रही, पहाड़ों की बारिश होती ही ऐसी है एक बार शुरू हो जाए तो फिर कब थमेगी कोई नही जानता। पहाड़ों का मौसम भी किसी अल्हड़ नवयौवना जैसा ही होता है कब मिजाज बदल ले कहना मुश्किल है। अभी खिली धूप अभी बारिश अभी सर्द अभी ठीक, इसलिए पहाड़ों में लोग बारह महीने गर्म कपड़े पहन कर रखते और साथ ही ज्यादातर लोग छाता साथ लेकर चलते हैं, जिसका इस्तेमाल बारिश या धूप से बचने के लिए तो होता ही है, बुजुर्ग इसे छड़ी की तरह इस्तेमाल करते तो कहीं यह जानवर इत्यादि के खिलाफ हथियार का काम भी कर जाता।
शाम होते होते तक बारिश काफी हल्की हो चुकी थी फिर भी लोगों की आवाजाही कम ही थी। शाम के धुंधलके बढ़ने लगे थे साथ साथ वातावरण भी कुछ ठंडा हो चला था। रोहन की उम्मीदें भी बाहर पसरे ठंडे माहौल की तरह ठंडी होती जा रही थी।
शिमला की तरफ से आने वाली हर बस से उतरने वाले यात्रियों को वो देख रहा था, पर किसी ने पीला सूट नही पहना था। अब तो सड़कों पर स्ट्रीट लाइट भी जल चुकी थी आसमान की रोशनी धूमिल हो चुकी थी और रात का साया गहराने लगा था।
हर आने जाने वाला तेज़ी से अपने गंतव्य की ओर बढ़ता नजर आ रहा था।
शायद वो लौटी ही नही, शायद वो आगे ही कहीं जा रही थी, पर उसके पास कोई सामान तो था नहीं, रोहन को पूरी उम्मीद थी की वो कहीं आसपास ही रहती होगी।
शायद दिन में जब वो दुकान में व्यस्त था तब लौट आई हो। रोहन खुद को समझाते हुए सोच रहा था। अचानक दीवार घड़ी पर नजर गई, ओह, 8 बज गए। उसने फुर्ती से दुकान का सामान समेटना शुरू किया, आसपास इक्का दुक्का दुकान ही खुली थी।
कुछ सोच कर उसने निर्णय किया, कल देखते है, कह कर दुकान बंद की और छतरी लेकर घर की ओर चल पड़ा। बारिश अभी भी पड़ रही थी, पर एक हल्की फुहार सी पड़ रही थी, रोहन को बारिश की ये छुअन और साथ ही उसके ख्याल बहुत भले प्रतीत हो रहे थे।
अगले दिन सुबह भी मौसम खुला नही था और रात की झड़ी बदस्तूर चालू थी। रोहन जल्दी से उठा और फिर नहा धो कर जल्दी जल्दी नाश्ता करने लगा।
मां को उसका ये अचानक आया उतावलापन कुछ समझ नहीं आ रहा था, पर फिर ये सोच कर शायद रास्ते में कहीं जाना होगा चुप हो गई।
ठीक 8.45 पर रोहन अपनी दुकान खोल चुका था, और 9 बजे तक पूरी दुकान चाक चौबंद हो चुकी थी यहां तक कि उसने प्रभु के सामने दिया भी जला दिया था।
और अब उसका पूरा ध्यान हर आने जाने वाले पर था, धीरे धीरे घड़ी की सुइयां खिसकती का रही थी, और साथ साथ सब्र का दामन भी छूटता जा रहा था। बारिश बदस्तूर जारी थी और बहती बूंदें रोहन के अरमानों को भी बहा कर ले जा रही थी।
उसे खुद पर झुंझलाहट भी आ रही थी वो क्यों एक अजनबी की एक झलक के लिए इतना बेकरार हो रहा था।
आज उसे बारिश भी अच्छी नही लग रही थी, न जाने क्या अजब कशिश थी उस चेहरे में रह रह कर आंखों के सामने आ जाता और फिर बिना कुछ कहे ही गायब हो जाता।
अब तो 10 बजने वाले थे, यानी अब वो नही आयेगी। शायद कभी नहीं, पर दिल कहता आयेगी, जरूर आएगी।
दिन भर रोहन की निगाहें उसी को ढूंढती रही, पर वो नही आई।
दो दिन और गुजर गए तो रोहन ने खुद को समझा लिया की शायद अब वो कभी नही आयेगी। पर फिर भी दिल में एक आस थी जो हर बार कहती आयेगी जरूर आएगी, और इसी उम्मीद के सहारे वो रोज़ समय से थोड़ा पहले ही शॉप खोल लेता और उसकी नजरें उसी को ढूंढती रहती। कभी कभी उसे अपने इस जुनून पर खुद ही हंसी भी आती।
आज सुबह आसमान साफ था, धूप चमक रही थी। 5 दिनों की आंख मिचौली के बाद सूर्य देवता आज नजर आ ही गए थे। इक्का दुक्का बादल नजर आ रहे थे। साफ धूप में प्रकृति का नजारा और भी मनोहारी हो गया था। मानो कोई सुंदरी नहा धो कर छज्जे पर अपने गीले बाल सुखा रही हो। हरियाली ने सारे माहौल को खुशनुमा बना रखा था।
रोहन अपनी आदत के मुताबिक 8.45 से थोड़ा पहले ही शॉप पर आ गया था, और साफ सफाई कर के सब सामान भी जमा चुका था, दिया भी प्रभु के सामने जला दिया था। आज मौसम साफ था इसलिए तकरीबन पूरा बाजार ही खुल सा गया था। लोगों की गहमा गहमी भी नजर आ रही थी।
अचानक सामने से हल्के आसमानी सूट में वो नजर आई, उसने धूप से खुद को बचाने के लिए चेहरे पर काला चश्मा लगा रखा था और छतरी भी खोल रखी थी। उसकी कंचन सी काया सुबह की धूप और उस आसमानी सूट में खिल रही थी, कुछ क्षण के लिए रोहन सब कुछ भूल कर उसी को देखता रह गया, वो किसी लता सी हवा में लहराती हुई चली आ रही थी, उसके घने काले बाल खुले थे और उसके हर कदम पर नाचते से महसूस हो रहे थे। वो सच किसी अप्सरा सी सुंदर दिख रही थी, सब नजरें उस पर टिक गई थी। ना जाने कितनी आहें उसकी राह में बिछ गई थी।
रोहन की दुकान के ठीक सामने आकर वो खड़ी हुई, फिर उसने अपनी नजरों से चश्मा उतारा और एक हल्की सी मुस्कान के साथ रोहन को देख कर हल्के से सर झुका कर रोहन का अभिवादन किया। इस से पहले रोहन उसके अभिवादन का जवाब दे पाता, सामने एक बस आकर खड़ी हो गई और देखते ही देखते वो उसकी नजरों से ओझल हो गई।
रोहन को समझ नही आया कुछ देर वो क्या करे, मन कहता था झूमो, पर दिमाग साथ नही दे रहा था।
एक बात तो थी जो तय थी, वो कहीं पास में ही रहती थी और कहीं आसपास ही कुछ काम करती होगी।
रोहन मंद मंद मुस्काए जा रहा था।
क्रमश:
आभार – नवीन पहल – ०९.१२.२०२१ 🙏❤️❤️🙏
Kaushalya Rani
14-Dec-2021 05:33 PM
Well penned
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नवीन पहल भटनागर
14-Dec-2021 07:02 PM
Thank you
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Seema Priyadarshini sahay
13-Dec-2021 12:22 AM
बहुत खूबसूरत
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नवीन पहल भटनागर
13-Dec-2021 12:26 AM
शुक्रिया जी
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Barsha🖤👑
10-Dec-2021 08:33 PM
Nice 🖊️
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नवीन पहल भटनागर
14-Dec-2021 07:02 PM
Thanks
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